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Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?-Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?-Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?-Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?-Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?-“Nitish Kumar की धमाकेदार वापसी, 10वीं बार बने बिहार के CM- जानिए मंत्रियों की पूरी लिस्ट”-“Nitish Kumar की धमाकेदार वापसी, 10वीं बार बने बिहार के CM- जानिए मंत्रियों की पूरी लिस्ट”-“Nitish Kumar की धमाकेदार वापसी, 10वीं बार बने बिहार के CM- जानिए मंत्रियों की पूरी लिस्ट”-“Nitish Kumar की धमाकेदार वापसी, 10वीं बार बने बिहार के CM- जानिए मंत्रियों की पूरी लिस्ट”-“Nitish Kumar की धमाकेदार वापसी, 10वीं बार बने बिहार के CM- जानिए मंत्रियों की पूरी लिस्ट”

Big News: उपेंद्र कुशवाहा ने विधायक छोड़कर अपने बेटे को बनाया मंत्री, उठे प्रश्न –मोदी-नीतीश जी बताएं ये परिवारवाद है या उत्तराधिकारवाद?

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Deepak Prakash 1763620112597 1763620112715Patna, R. Kumar: नीतीश कुमार की 10वीं बार मुख्यमंत्री बनते ही बिहार में एक चौंकाने वाला राजनीतिक मोड़ सामने आया है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने न तो अपने चुने हुए विधायक पर, बल्कि सीधे अपने 37 वर्षीय बेटे, दीपक प्रकाश पर भरोसा जताया और उन्हें मंत्री पद दिलाने में सफल रहे हैं। आइए बताते हें क्या है पूरा मामला?

बिना चुनाव लड़े मंत्री बने दीपक प्रकाश
आपको बता दें कि दीपक प्रकाश ने हाल ही हुए बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया, और फिलहाल वे किसी सदन (विधान सभा या विधान परिषद) के सदस्य भी नहीं हैं। ऐसे में उन्हें आगामी 6 महीनों के भीतर विधानसभा या विधान परिषद में किसी भी सदन का सदस्य बनना होगा, ताकि वे मंत्री पद बनाए रख सकें।

Bihar Cabinet Minister Deepak Prakash

जानिए दीपक प्रकाश की पृष्ठभूमि
पिता हैं उपेंद्र कुशवाहा जो राज्यसभा सांसद हैं और RLM प्रमुख हैं। मां स्नेहलता कुशवाहा हैं जो इस बार  सासाराम से विधायक बनी हैं। दीपक प्रकाश ने एमआईटी, मणिपाल से कंप्यूटर साइंस में बीटेक (2011) पूरा किया। इसके बाद उन्होंने लगभग दो साल तक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया।

अब इस नियुक्ति के राजनीतिक मायने हैं। क्योंकि खुद उनकी मां विधायक हों और वे बिना चुनाव लड़े मंत्री बने हैं। RLM (उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी) ने इस चुनाव में 6 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 4 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। बताया जा रहा है कि कुशवाहा ने अपने बेटे के लिए मंत्री पद सुनिश्चित करने के लिए एमएलसी (विधान परिषद) सीट का वादा भी लिया था। 

राजनीतिक और नैतिक सवाल

  1. घरेलू सत्ता-साझा रणनीति
    इस कदम से यह संदेश जाता है कि कुशवाहा परिवार अपनी राजनीतिक ताकत को पारिवारिक पीढ़ी तक आगे बढ़ाना चाहता है। हालांकि यह लोकतंत्र की स्तरीयता (meritocracy) और पारदर्शिता के दृष्टिकोण से विवादास्पद है।
  2. चुने गए विधायकों को दरकिनार

RLM के चार विधायक चुनकर विधानसभा गए हैं, लेकिन मंत्री पद कुशवाहा ने अपने बेटे को दिया। यह उन विधायकों के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने जनता से प्रत्यक्ष जनादेश हासिल किया। बेचारे इंतजार करते रह गए और बेटे को उपेन्द्र कुशवाहा ने मंत्री पद दिलवा दिया।

  1. जनमत और नैतिक पक्ष

समर्थकों के लिए यह “भरोसे की बात” है। कुशवाहा ने अपने परिवार के भरोसे को दिखाया। ऐसे में उन विधायकों को सोचना होगा कि वो किस पर भरोसा करें?

RLM को किन सीटों पर मिली जीत

RLM को बाजपट्टी,दिनारा,सासाराम और मधुबनी सीट पर जीत मिली है। बाजपट्टी सीट पर रामेश्वर कुमार महतो को 3395, मधुबनी से माधव आनंद को 20552, सासाराम से उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता को 25000 से अधिक और दिनारा से आलो कुमार सिंह 10834 वोट के अंतर से जीते हैं। इसमें तीन विधायक उपेंद्र कुशवाह के परिवार से नहीं है। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने इन तीनों में से किसी पर भरोसा नहीं जताया। अब ये लोग दरी बिछाते रहें और करते रहें- उपेंद्र कुशवाहा जिंदाबाद-जिंदाबाद !

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निष्कर्ष और संभावित प्रभाव

उपेंद्र कुशवाहा द्वारा अपने बेटे को मंत्री बनाना, एक राजनीतिक रणनीति के रूप में स्पष्ट है- यह OBC (विशेषकर कुशवाहा / कुर्मी) समुदाय में उनकी शक्ति बनाए रखने का एक तरीका हो सकता है। लेकिन इस कदम ने एनडीए के वादों पर सवाल उठा दिए हैं, खासकर उन वायदों पर, जो पहले उन्होंने लालू-परिवार के खिलाफ लगाए थे। यदि विपक्ष इस मुद्दे को सही रणनीति के साथ उठाए, तो यह एनडीए के लिए एक मजबूत चुनौती बन सकता है। वोट बैंक राजनीति, उत्तराधिकारवाद, और जनप्रतिनिधित्व की संवेदनशीलता पर।

भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि दीपक प्रकाश वास्तव में कितनी जल्दी सदन में प्रवेश करते हैं, और क्या उनकी कार्य-क्षमता और उपलब्धियां उन्हें एक “परिवार-राजनेता” से आगे ले जाती हैं, या सिर्फ उन्हें उसी “पारिवारवाद” के घेरे में छोड़ देती हैं, जिसे पहले एनडीए ने नकारा था। आलोचकों के लिए यह “नेपोटिज्म” का उदाहरण है। खासकर जब बेटा बिना चुनाव लड़े बड़े पद पर आ रहा हो। अब सवाल ये उठता है कि प्रधानमंत्री या एनडीए के नेता किस मुंह से लालू प्रसाद पर परिवारवाद का आरोप लगाएंगे। आश्यर्य की बात ये रही कि सब कुछ हुआ- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने। जो परिवारवाद के कट्टर विरोधी हैं। 

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