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PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।-PM Modi ने 71,000 युवाओं को बांटा नियुक्ति पत्र, डेढ़ साल में 10 लाख को मिली सरकारी नौकरी।

जानिए बंपर वोट से किसे होगा फायदा?, पहले चरण के चुनाव के निकाले जाने लगे मायने!

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New Delhi, R.Kumar: Lok Sabha Election 2024 में शुक्रवार को पहले चरण की वोटिंग को देखते हुए अब लोगों के मन में ये सवाल उठने लगे हैं कि इसके आखिर क्या मायने हैं? लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश के 21 राज्यों में 102 सीटों पर वोट डाले गए। वोटिंग शुरू होने के बाद पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा से लेकर मेघालय में बंपर वोटिंग देखने को मिली। वहीं, यूपी-बिहार और मध्यप्रदेश में भी वोटरों में गजब का उत्साह था। पहले चरण में पश्चिम बंगाल की 4, यूपी की 8 और बिहार में 4 सीटों पर वोट डाले गए। इसके अलावा तमिलनाडु (39) और उत्तराखंड (5 सीट) की सभी सीटों पर वोटिंग हुए। अब ऐसे में सवाल है कि इस मतदाताओं में वोटिंग को लेकर उत्साह और बंपर वोटिंग से किसे फायदा होगा।

वोट प्रतिशत का क्या मतलब है?

लोकतंत्र में आमतौर पर माना जाता है कि जब चुनावों में मतदान की संख्या बढ़ती है तो लोग सत्ताधारी दल के खिलाफ वोट मानते हैं। पूरी दुनिया में जब भी कहीं ज्यादा वोटिंग होती है तो नेता, मतदाता और चुनाव विश्लेषक इसका अलग-अलग मतलब लगाते हैं। चुनावों में ज्यादा और कम वोटिंग को वो एक खास तरीके से देखते हैं। अगर बढ़ी या कम हुई वोटिंग को चुनाव लड़ रही पार्टियों के सिलेसिले में देखें तो इसके मतलब अलग होते हैं। मोटे तौर पर मानते हैं कि ज्यादा वोटिंग का मतलब एंटी एनकंबैसी फैक्टर हावी है यानि सत्ता में मौजूदा पार्टी से नाराजगी वाले वोट ज्यादा पड़े हैं।

हालांकि हर चुनाव में वोटिंग से पहले चुनाव आय़ोग से लेकर ज्यादातर नेता ये कोशिश करते हैं कि मतदाता बड़े पैमाने पर घर से निकलें और ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालें। ये लोकतंत्र के लिए तो अच्छा है लेकिन ज्यादा वोटिंग सियासी दलों को अलर्ट मोड पर भी ले आती है। वो इसका मतलब अपने अपने तरीके से लगाने लगते हैं।

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लोकसभा और विधानसभा में इसके मायने अलग हो सकते हैं

हालांकि पिछले हुए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट कुछ और ही कहानी कहते हैं। जहां अब तक ये धारणा थी कि ज्यादा मतदान सत्तापक्ष के खिलाफत को दिखाता है। लेकिन जो रिजल्ट आए वो ठीक इसके उलट थे। लेकिन विधानसभा में ये ट्रेंड काम नहीं किया। ऐसे में घटे या बढ़े मतदान प्रतिशत का सत्ता विरोधी या सत्ता के पक्ष में कोई कनेक्शन समझ में नहीं आता। हां, अगर छह-सात फीसदी का अंतर हो तब जरूर चौकाने वाले रिजल्ट आएंगे।

आमतौर पर विश्लेषक मानते हैं कि कम वोटिंग ये कहती है कि मतदाता उदासीन है और जो चल रहा है वो चलते रहने देना चाहता है जबकि ज्यादा वोटिंग का मतलब वह बदलाव चाहता है। लेकिन कई बार मिक्स रुझान भी होता है। वैसे इस साल हिमाचल प्रदेश में चुनावों में वोट प्रतिशत बढ़ा था और उसका नतीजा वहां बदलाव के तौर पर देखने को मिला। माना जाता है कि विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनावों के मुकाबले ज्यादा वोट पड़ते हैं।

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बंपर वोटिंग से किसे होगा फायदा

वोटिंग के बाद राजनीतिक गलियारे से लेकर मतदाताओं के बीच ये चर्चा शुरू हो जाती है कि बंपर वोटिंग का किसे फायदा मिलेगा। जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि आमतौर पर अधिक वोटिंग या वोटिंग प्रतिशत बढ़ने को सत्ता पक्ष के खिलाफ जनाक्रोश के रूप में देखा जाता है। लोगों का मानना है कि लोग मौजूदा सरकार को बदलने के लिए अधिक वोट करते है। अधिक वोटिंग प्रतिशत को सरकार बदलने का पर्याय अभी तक माना जाता रहा है।

पिछले चुनावों में ट्रेंड बदला

हालांकि, पिछले कुछ चुनावों में यह ट्रेंड बदला है। यदि लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के आंकड़ों को देखें तो अधिक वोटिंग प्रतिशत के बावजूद केंद्र में एनडीए की सत्ता में वापसी हुई है। 2014 के 66.4 फीसदी के मुकाबले 2019 में 67.3 फीसदी वोट पड़े थे। इसके बावजूद केंद्र में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई थी। हालांकि, यदि 2009 के वोटिंग प्रतिशत की तुलना करें तो 2014 में अधिक वोटिंग से सत्ता में बदलाव हुआ। 2014 में 2009 के 58.2 फीसदी के मुकाबले 66.4 फीसदी वोट पड़े थे। वहीं जब भारत में पहली बार 1952 में आमचुनाव हुए थे तब वोटों का प्रतिशत केवल 46 फीसदी था। अगर 1989 से लेकर 2019 तक आमचुनावों में वोटों का औसत काउंट देखेंगे तो पाऐंगे कि ये 52.8 फीसदी रहा है।

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