
Patna,R.kumar: पूजा-पंडालों और धार्मिक आयोजनों के बहाने सड़कों-चौराहों पर अत्यंत तेज आवाज में म्यूजिक-सिस्टम और लाउडस्पीकर बजाना आम नागरिकों के लिए बड़ी समस्या बन गया है। बुजुर्ग, बीमार, छोटे बच्चे और पढ़ाई करने वाले छात्र इससे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। कई बार आवाज इतनी तेज होती है कि लोगों का दिल की धड़कन बढ़ जाती है, नींद व पढ़ाई बाधित होती है और घर में चैन रहना दूभर हो जाता है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि दिन हो या रात, पर्व-त्योहार या व्यक्तिगत पूजा—लाउडस्पीकर की अनियंत्रित आवाज ने निवासियों की ज़िंदगी कठिन कर दी है। प्रशासन ने साउंड-लिमिट तय की है परन्तु शिकायतों के बावजूद कई स्थानों पर नियमों की अनुशासनहीनता जारी है। शिकायत करने पर समुदाय-प्रबंधक या पूजा समिति द्वारा विरोधी नागरिकों को सामाजिक रूप से दबाने की घटनाएं भी सामने आई हैं। कहीं-कहीं शिकायत करने पर प्रताड़ना या हिंसा तक की आशंका रहती है।
क्या है समस्या का तांडव?
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प्रमुख सड़कों, आवासीय कॉलोनियों और अस्पतालों के आसपास पंडालों पर लगातार तेज संगीत।
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रात में भी लाउडस्पीकर से अभिघाती आवाजें—नींद और स्वास्थ्य पर असर।
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पढ़ने वाले छात्र और प्रशिक्षण केन्द्र प्रभावित—परिणाम: पढ़ाई में मन नहीं लगना।
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बुजुर्ग व बीमार मरीजों में मानसिक तनाव, हृदय-चक्कर बढ़ना और आराम विघ्नित होना।
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प्रशासनिक शिकायतों के बावजूद त्वरित कार्रवाई का अभाव।
आम जनता क्या करे?
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सबूत जुटाएं: मोबाइल से वीडियो/ऑडियो रिकॉर्डिंग करें और दिन-समय, स्थान नोट करें।
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शोर मापें: स्मार्टफोन-डीबी मीटर ऐप से शोर स्तर रिकॉर्ड रखें।
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स्थानीय पुलिस/कनिष्ठ अधिकारी से संपर्क: लिखित (ई-मेल/व्हाट्सएप/फोर्मल) शिकायत दें; प्राप्ति-संदेश रखें।
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नगर निगम/शहर पालिका को शिकायत: नॉइज़ पॉल्यूशन और लोक मार्ग नियम उल्लंघन की रिपोर्ट करें।
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नागरिक समूह/एनजीओ से मदद लें: पड़ोस के लोगों के साथ मिल कर सामूहिक शिकायत करने पर असर बढ़ता है।
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कानूनी कार्रवाई: ज़रूरत पड़ने पर स्थानीय न्यायालय में याचिका दायर करें (न्यायालय अक्सर त्वरित आदेश जारी करता है)।सलाह: शारीरिक संघर्ष से बचें; सभी कदम सबूत के साथ कानूनी और शांतिपूर्ण रूप से उठाएं।
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सलाह: शारीरिक संघर्ष से बचें; सभी कदम सबूत के साथ कानूनी और शांतिपूर्ण रूप से उठाएं।
क्या अधिकारियों को करना चाहिए?
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सख्त रूप से निर्धारित साउंड-लिमिट लागू करना और समय-सीमाएँ (प्रातः/रात्रि) निर्धारित करना।
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पर्वों के दौरान ज़ोन-बेस्ड परमिट और स्पीकर्स की अनुमति नियंत्रित करना।
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शिकायत मिलने पर त्वरित निरीक्षण और नियम उल्लंघन पर जुर्माना/डिसकनेक्शन जैसे विकल्प लागू करना।
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समुदाय-स्तर पर जागरूकता अभियानों के ज़रिये धर्म-संस्थाओं से सहयोग बनवाना।
नागरिकों के अनुभव
“रात में इतनी आवाज होती है कि बच्चे रोते हैं और बुजुर्ग परेशान रहते हैं—हम चैन से नहीं सो पाते।” — एक स्थानीय निवासी
“स्पष्ट नियम होने के बावजूद लागू करने वाला इंतज़ाम नहीं दिखता; शिकायत करने पर ही अक्सर शांति नहीं रहती।” — पड़ोस का छात्र
निष्कर्ष: आस्था और सहअस्तित्व का संतुलन ज़रूरी
धार्मिक आस्था और सामुदायिक पूजा-अभिव्यक्ति का सम्मान होना चाहिए परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि किसी के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता बाधित हो। प्रशासन, पूजा-समितियाँ और नागरिक- तीनों मिलकर नियमों का सम्मान कर सकते हैं और कम शोर वाले, समयबद्ध एवं संवेदनशील पूजा-प्रथाएँ सुनिश्चित कर सकते हैं। आखिरकार आस्था का सच्चा स्वरूप सहनशीलता और दूसरों के अधिकारों का सम्मान ही होना चाहिए।


