लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव परिणाम अच्छा न आने के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ को एक सॉफ्ट टारगेट की तरह निशाना बनाकर हार का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा के टिकट वितरण में भाजपा के नेतृत्व में उनकी दी हुई उम्मीदवारों की लिस्ट पर गौर तक नहीं किया गया। ये कोई ऐसा आरोप नहीं है, जो मैं अपनी तरफ से जोड़ रहा हूं, बल्कि इस बात की बाकायदा चर्चा रही है कि उत्तर प्रदेश में टिकट बांटने का काम अमित शाह ने अपने हिसाब से किया, जिसमें पीएम मोदी की सहमति तो होगी ही? लेकिन सीएम योगी उनके इस रवैए से सहमत नहीं थे, क्योंकि वो जानते थे कि कहां से किस उम्मीदवार की जीत आसानी से हो सकती है।
लेकिन अब हार का ठीकरा योगी आदित्यनाथ के सिर पर फोड़ने की कोशिशें इस प्रकार से की जा रही हैं जिससे कि उन पर आसानी से दबाव बन सके और वो कमजोर हो सकें, और ये दबाव भाजपा के नेताओं से ज्यादा सहयोगी दलों और पार्टी के योगी विरोधी नेताओं के जरिए बनाया जा रहा है।
लेकिन सवाल ये है कि अचानक प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दलों और कुछ विधायकों को एकाएक मुख्यमंत्री योगी में कमियां क्यों नजर आने लगने लगी हैं? वें तो टॉप 5 के स्टार प्रचारकों में शामिल हिंदू ब्रांड नेता थे? क्या माना जाए ये लोकप्रियता ही उनके लिए खतरा सिद्ध हो रही है?