
मोतीपुर (मुजफ्फरपुर): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब से कुछ ही देर में मोतीपुर में चुनावी सभा करने वाले हैं। लेकिन उनके आगमन से पहले ही यहां एक पुराने वादे को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। दरअसल, पीएम मोदी ने अपने पिछले दौरे में ऐलान किया था कि मोतीपुर चीनी मिल को फिर से चालू करवाया जाएगा, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी यह वादा अब भी अधूरा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब-जब चुनाव आते हैं, तब-तब मोतीपुर चीनी मिल का मुद्दा चर्चा मेंं आ जाता है, लेकिन चुनाव के बाद यह फिर ठंडे बस्ते में चला जाता है। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर मोतीपुर ग्राउंड में सभा करने आ रहे हैं, तो लोग पूछ रहे हैं- “क्या इस बार भी वादा सिर्फ जुमला ही रहेगा?”
मोतीपुर चीनी मिल का इतिहास
मोतीपुर चीनी मिल बिहार की सबसे पुरानी सरकारी चीनी मिलों में से एक थी। इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन काल में हुई थी और एक समय यह पूरे उत्तर बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती थी।
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इस मिल में हजारों लोगों को रोजगार मिलता था।
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मिल की बंदी के बाद न केवल कामगारों की रोजी-रोटी छिनी, बल्कि गन्ना किसान भी प्रभावित हुए।
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वर्ष 2000 के बाद से यह मिल लगातार घाटे में जाती रही और आखिरकार 2010 के आसपास इसे बंद कर दिया गया।
तब से अब तक कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन मिल के पुनरुद्धार की बात केवल घोषणाओं तक ही सीमित रही।
लोगों की नाराजगी और उम्मीदें
मोतीपुर व आसपास के इलाकों के किसान और श्रमिक अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस बार शायद मिल दोबारा शुरू हो जाए। लेकिन लोगों में नाराजगी भी कम नहीं है। स्थानीय निवासी कहते हैं — “हर बार नेता आते हैं, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई यहां झांकने तक नहीं आता।” वहीं, युवा मतदाता इसे रोजगार का सवाल मानते हुए कहते हैं कि यदि मिल शुरू हो जाए, तो पलायन पर भी रोक लग सकती है। लेकिन अफसोस पीएम ने अपने वादे को नहीं निभाया। अगर चीनी मिल चालू हो गया होता तो आज यहां पर लोगों को रोजगार मिल गया होता।
चर्चा में है मोदी की अगली घोषणा
मोदी के आने से पहले ही सोशल मीडिया पर यह चर्चा तेज है कि क्या इस बार प्रधानमंत्री मोतीपुर की जनता को कोई नई सौगात देंगे या फिर पुराने वादे पर ही बात घुमेगी। अब सबकी निगाहें मोदी के भाषण पर टिकी हैं – क्या वे मोतीपुर चीनी मिल के पुनरुद्धार का ठोस रोडमैप पेश करेंगे या यह वादा एक बार फिर चुनावी जुमला बनकर रह जाएगा?


