
Chhath Puja Story: छठ व्रत मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मइया (उषा) की उपासना का पर्व है। यह बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई इलाकों में सबसे बड़ा लोक पर्व माना जाता है।
लेकिन इसकी “अनकही कहानी” सिर्फ पूजा नहीं बल्कि आस्था, स्त्री बल, और प्रकृति के संतुलन की कहानी है।
पौराणिक कथाओं से झलक
- महाभारत की कथा:
द्रौपदी और पांडवों ने कठिन समय में सूर्यदेव की उपासना की थी।
सूर्यदेव ने द्रौपदी को “अखंड सौभाग्य” और पांडवों को पुनः राज्य प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
माना जाता है कि छठ व्रत की जड़ें यहीं से जुड़ी हैं। - रामायण से संबंध:
श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्यदेव की पूजा की थी।
उसी से यह परंपरा आरंभ हुई मानी जाती है।
अनकही लोककथा: “छठी मइया की पुकार”
लोक में कहा जाता है कि छठी मइया सूर्य देव की बहन हैं। जब धरती पर रोग, अकाल या संकट बढ़ता है, तो छठी मइया अपने भाई सूर्य से कहती हैं- “भैया, अपने किरणों से जीवन दो, अन्न दो, प्रकाश दो।” इसलिए व्रती लोग जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं- क्योंकि वही क्षण होता है जब मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे को प्रणाम करते हैं।
स्त्री शक्ति की अनकही कहानी
छठ व्रत में महिलाएं (और आजकल पुरुष भी) निर्जला उपवास रखती हैं। तीन दिन तक न खाने-पीने के बावजूद उनके चेहरे पर तेज होता है। क्योंकि यह व्रत केवल शरीर का नहीं, मन, आत्मा और संकल्प का व्रत है। लोक मान्यता है- जो छठ व्रत करती है, वह अपने परिवार के जीवन, स्वास्थ्य और संतान की मंगलकामना के लिए खुद को तप में डालती है।
यह मातृत्व की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है।
प्रकृति से जुड़ा विज्ञान
- सूर्य को जल चढ़ाने से शरीर में विटामिन D और ऊर्जा का संतुलन बनता है।
- नदी/तालाब में स्नान से शुद्धता और मन की एकाग्रता आती है।
- उपवास से शरीर डिटॉक्स होता है।
इस तरह यह पर्व धार्मिक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक और पर्यावरणीय संतुलन का संदेश भी देता है। छठ सिर्फ पूजा नहीं, यह मानव और प्रकृति का संवाद है। यह बताता है- “जब मनुष्य अपनी सीमाओं को छोड़ प्रकृति के साथ जुड़ता है, तब सूर्य भी उसकी प्रार्थना सुनता है।”


