मऊ। सच लिखना मेरी फितरतों में शामिल है। 20मई 2024को जब मैं साइबर क्राइम का शिकार होकर कंगाल हो गया और भिखमंगे जैसी स्थिति हो गई तब भी आपको जानकारी दी। अब जब हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता, नामी-गिरामी व्यवसायी,पत्रकार, राजनेता आदि के सहयोग से एक दिन में ही मालामाल हो गया तब इसे भी आपके साथ साझा करने से खुद को नहीं रोक पा रहा हूं। यद्यपि कि जनसहयोग से मेरे फोन पे/गूगल पे नम्बर 9415509811में और नकद दोनों हाथों में मिले आर्थिक सहयोग को भावातुर होकर मैं जनहित को समर्पित करता हूं। लेकिन कंगाल से मालामाल होने के बाद भी मैं साइबर क्राइम के शिकार होने वाले लोगों का दर्द नहीं भूल सकता। जिसे मैंने एक ही दिन में महसूस किया। यह अलग बात है कि मेरी फितरतों जैसे -सत्ता से सवाल, भ्रष्ट प्रशासन को कटघरे में खड़ा करना,भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष आदि से खुश रहने वाले लोगों ने मुझे एक दिन में ही कंगाल से मालामाल जरूर कर दिया। लेकिन,उनके ऊपर क्या बीतती है। जो, साइबर क्राइम का शिकार होकर पल-पल घुटन महसूस करते हैं या तो फांसी लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। मेरी निजी जानकारी में साइबर क्राइम गिरोह से आये दिन अच्छे-अच्छे लोगों का पाला पड़ रहा है। यह अलग बात है कि कोई शिकार बन जा रहा है तो कोई अपनी त कदीर से बच जा रहा है। और कोई इसे जगजाहिर करने में अपनी बेइज्जती महसूस कर खामोशी की चादर ओढ़ लेता है।मुझे तमाम लोगों ने समझाया कि गूगल के विरुद्ध आवाज उठाना ठीक नहीं है। लेकिन,सच को सच कहना मेरी आदतों में शुमार है। इसलिए मैंने आपके सम्मुख अपनी भावनाओं को उजागर किया। गूगल की मिलीभगत से प्रतिदिन लाखों करोड़ों रुपयों की ठगी हो रही है। मगर, “जाके पांव न फटी बेवाई,सो क्या जाने पीर पराई”। मगर,मैंने साइबर क्राइम के शिकार लोगों की पीड़ा महसूस किया तो इसे आपसे साझा किया। गूगल के विरुद्ध यह लड़ाई जनांदोलन का रूप न ले ले। इसके पूर्व शासन-प्रशासन को इस बात को महसूस करते हुए प्रभावी कदम उठाने के लिए विचार करना चाहिए। वरना, शोषण उत्पीड़न और ठगी तो सदियों से होती चली आ रही है। नये दौर में इसके तरीके नये-नये होते जा रहे हैं। शासन -प्रशासन तो घटना- दुर्घटना के बाद अपना काम करता नजर आता ही है। जागरूकता फैलाने में भी पीछे नहीं रहता। लेकिन कहा जाता है कि अपराध रोकने के लिए जड़ों पर प्रहार करना चाहिए।जब अपराधियों का आर्थिक साम्राज्य तबाह होता है।तब जाकर वे मिट्टी में मिलते हैं। मैं जानता हूं कि साइबर क्राइम का शिकार होने से जितना मेरा नुकसान हुआ है। उससे कहीं ज्यादा नुकसान शांता क्रुज मुम्बई में बैठे उस साइबर क्रिमिनल्स को पकड़ कर यहां की अदालत में पेश करने में हो जाएगा। लेकिन,जब इसे छोटा अपराध मानकर पुलिस चुप बैठ गई तो फिर कानून के हाथ लंबे कैसे माने जाएंगे? कैसे रूकेगा साइबर क्राइम? माना कि दुनिया से अपराध नहीं मिटाया जा सकता। लेकिन,यह भली-भांति जानने के बाद भी कि हर पैदा होने वाले को मरना ही पड़ेगा। इसके बाद भी लोग जन्म लेना नहीं छोड़ते।उसी तरह यह जानकर भी कि दुनिया से अपराध नहीं मिटाया जा सकता। इसके बावजूद अपराधियों को नेस्तनाबूत करने का पुलिस का चल रहा प्रयास सराहनीय है। पुलिस को चाहिए कि बिना किसी भेद-भाव के हर छोटी-बड़ी घटनाओं का पर्दाफाश करने का अभियान जारी रखे।क्यों कि जाने के बाद अगर किसी की प्रशंसा होती है तो व्यक्ति की कार्यशैली ही है। वरना इंसान के रूप में तो सभी पैदा हुए ही हैं। मगर,जब इंसानियत दिखे ही न तो फिर इंसान कैसा?जैसे-जनपद मऊ के जिलाधिकारी प्रवीण मिश्र जी, पुलिस अधीक्षक इलामारन जी.चुनावी व्यस्तताओं के बीच भी जिस तरह से अपने-अपने कार्यालयों में एक-एक फरियादियों को खुद सुनते हुए देखे जाते हैं तो इस बात की चर्चा जनपद के कोने-कोने में सुनने को मिलती है। वैसे ही जब इन अधिकारियों से प्रेरणा लेकर अन्य सभी अधिकारी भी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां निभाने लग जायें तो कम से कम मऊ जनपद को तो एक आदर्श जनपद के रूप में प्रस्तुत किया ही जा सकता है।
(साभार – ऋषिकेश पांडेय,ब्यूरोचीफ ‘आज’ हिंदी दैनिक मऊ।)