नई दिल्ली: देशभर में होली का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। होली के पर्व को लेकर अगल ही उत्साह लोगों में देखने को मिल रहा है। होली के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होली के दिन होलिका दहन किया जाता है और एक-दूसरे को रंग लगाकर बधाई दी जाती है।
होलिका राक्षस कुल के राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। उन्होंने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर मारने की कोशिश की लेकिन उन्होंने खुद की जान गवां ली। इतना तो सब जानते हैं लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं, होलिका दहन के पीछे की एक दर्द भरी Love Story के बारे में जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह कथा आपको हिमाचल की लोक कथाओं में सुनने को आज भी मिल जाएगी।
होलिका और इलोजी की Love Story
होलिका राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी और उनको वरदान में ऐसी दुशाला मिली थी कि जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसका कुछ नुकसान नहीं पहुंचा सकती थी। कथा के अनुसार, होलिका और इलोजी एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। इलोजी को कामरूप का प्रतिरूप कहा जाता था। होलिका और इलोजी ने विवाह करने का फैसला किया। कुछ दिन बाद होलिका का विवाह इलोजी से तय हो गया था और विवाह की तिथि फाल्गुन पूर्णिमा की रात निकली थी। लेकिन किस्मत को उस दिन कुछ और ही मंजूर था। इस कथा की मानें तो होलिका केवल एक बेबस प्रेमिका थी, जो अपने प्रिय इलोजी को बचाने के लिए हवन कुंड में जल गई।
होलिका ने हिरण्यकश्यप को किया था मना
हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की विष्णु भक्ति से काफी परेशान थे। हिरण्यकश्यप ने कई बार अलग-अलग तरीकों से अपने बेटे को समझाने की कोशिश की लेकिन हर बार नाकामी मिली। इसलिए एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की बलि देने का फैसला कर लिया। चूंकि होलिका को अग्नि से बचने का वरदान मिला था तो हिरण्यकश्यप ने एक योजना बनाई। योजना के अनुसार, होलिका प्रहलाद को लेकर हवन कुंड में बैठेगी, जिससे हिरण्यकश्यप को प्रहलाद से मुक्ति मिल जाएगी। इस योजना के बारे में राजा ने होलिका को बताया लेकिन होलिका ने मना कर दिया।
होलिका को हिरण्यकश्यप ने दी सजा देने की धमकी
हिरण्यकश्यप के बार-बार कहने पर भी होलिका नहीं मानी तो हिरण्यकश्यप ने विवाह में खलल डालने की धमकी दी और इलोजी को सजा देने की भी धमकी दी। बेबस होकर होलिका ने अपने भाई की बात मान ली और हवन कुंड में प्रहलाद को लेकर बैठने की बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका का विवाह तय हुआ था तो हिरण्यकश्यप ने कहा कि पहले प्रहलाद को लेकर हवन कुंड में बैठ जाना और फिर तुम इलोजी के साथ विवाह कर सकती हो।
जलकर राख हो गई होलिका
इधर इलोजी को इस बात की जानकारी नहीं थी की हिरण्यकश्यप होलिका पर दबाव बना रहे हैं। जबकि वह पूर्णिमा के दिन बारात लेकर आ रहे थे। महल में विष्णु भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में होलिका बैठ गईं लेकिन प्रहलाद को जलाने के चक्कर में खुद ही भस्म हो गई। बारात लेकर पहुंचे इलोजी ने जब यह नजारा देखा कि होलिका जलकर राख हो गई है तो वह यह बात स्वीकार नहीं कर सके और उन्होंने भी उसी अग्नि कुंड में कूद लगा दी थी लेकिन तब तक अग्नि शांत हो चुकी थी। व्याकुल इलोजी यह देखकर हताश हो गए और सब कुछ छोड़कर वन को चले गए। होलिका की मौत से यह प्रेम कहानी अधूरी रह गई। होलिका से शादी नहीं होने के कारण इलोजी ने फिर कभी शादी नहीं की और उनकी यह प्रेम कहानी अमर हो गई। आज भी हिमाचल प्रदेश में होलिका और इलोजी की प्रेम कहानी गाकर याद करते हैं।