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धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।-पारदर्शी, प्रभावी और जनता-केंद्रित पुलिसिंग स्थापित करना है पहली प्राथमिकता - संजय कुमार त्रिपाठी-तहसील बार एसोसिएशन ने एसडीएम अशोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में घोसी के सपा विधायक सुधाकर सिंह को दी श्रद्धांजलि-“सम्राट चौधरी बने गृह मंत्री, नीतीश कैबिनेट में कानून-व्यवस्था की बागडोर भाजपा के हाथों”

धर्म की रक्षा के लिए शीश दिया- मगर सिर नहीं झुकाया, हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन।

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New Delhi/ Historical Desk: आज की दोड़-भाग और आधुनिक जीवनशैली में हम अकसर अपने इतिहास, अपनी जड़ों और उन महान बलिदानों को भूलने लगते हैं, जिनकी वजह से हमें धर्म और स्वतंत्रता की आज़ादी मिली है। ऐसे समय में ज़रूरी है कि हम अपने पूर्वजों और महान संतों को याद करें- विशेषकर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब को, जिन्होंने दूसरों के धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया।

सिखों के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपने जीवन का हर पल मानवता, धार्मिक स्वतंत्रता और सत्य की रक्षा के लिए समर्पित किया। कश्मीर के हिंदुओं पर जारी धर्मांतरण के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई और इसी धर्म की रक्षा के लिए 1675 में अपना मत्था दिल्ली में बलिदान कर दिया। उनके इस सर्वोच्च बलिदान की याद में दिल्ली में दो प्रमुख ऐतिहासिक गुरुद्वारे स्थापित हुए। गुरुद्वारा शिशगंज साहिब और गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब।

क्यों पड़ा शिशगंज साहिब नाम?

गुरु तेग बहादुर को औरंगज़ेब के हुक्म पर चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। शहादत के बाद, उनके पवित्र शीश को सिख भक्त भाई जटा (भाई जीते) चोरी-छुपे रात के अंधेरे में उठाकर आनंदपुर साहिब ले गए। इसी स्थान पर आज बना है- गुरुद्वारा शिशगंज साहिब। यह स्मारक उस त्याग का प्रतीक है जिसने धर्म की रक्षा को सर्वोपरि बताया।

रकाबगंज साहिब का इतिहास

गुरु जी के धड़ को वहीं छोड़ दिया गया था। भाई लखमी दास बंजारा, जो गुरु के भक्त थे, उन्होंने उस पवित्र शरीर को सम्मानपूर्वक अपने घर ले जाकर लकड़ियों की बजाय अपने लकड़ी के रकाब (पैर रखने की लकड़ी) को जलाकर अंतिम संस्कार किया। यही स्थान आज- गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के रूप में जाना जाता है। यहां की दीवारों में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की ताकत आज भी प्रेरणा देती है।

गुरु तेग बहादुर: “हिंद की चादर”

गुरु जी को “हिंद की चादर” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने दूसरों के धर्म और अधिकार की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। उनका संदेश था- “धर्म किसी एक का नहीं, सबका है। जब अन्याय हो, तो संघर्ष ही धर्म है।”

गुरुद्वारा शिशगंज साहिब और रकाबगंज साहिब जाएं

गुरुद्वारा शिशगंज और रकाबगंज केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि बलिदान, मानवता और स्वतंत्रता के अमर स्मारक हैं।  आज भी लाखों श्रद्धालु गुरु तेग बहादुर साहिब को नमन कर यह संकल्प दोहराते हैं- अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्चा धर्म है। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अगर आप दिल्ली जाएं तो एक बार जरूर गुरुद्वारा शिशगंज साहिब और रकाबगंज साहिब जाएं। आप अपने आपको गुरु के करीब महसूस करेंगे।

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