HIGHLIGHTS
नीतीश ने चली अगड़ा-पिछड़ा की चाल !
JDU के राष्ट्रीय महासचिव बने मनीष वर्मा।
संजय झा बने हैं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष।
जेडीयू को राजपूत में चर्चित चेहरे की तलाश।
भूमिहार कोटे से ललन सिंह बने हैं केन्द्र में मंत्री।
New Delhi, R.Kumar: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी पूर्व आईएएस मनीष वर्मा के जेडीयू में एंट्री के बाद से ही इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी में उनको बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। ऐसे में मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने मनीष वर्मा को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए राष्ट्रीय महासचिव बनाया है और मनीष वर्मा को संगठन की जिम्मेदारी सौंपी है। वो मंगलवार को आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल हुए थे। कुर्मी जाति से आने वाले मनीष को नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा है।
कौन हैं मनीष वर्मा
मनीष वर्मा ओडिशा कैडर के 2000 बैच के अधिकारी थे। ओडिशा में उन्होंने माओवाद प्रभावित मलकानगिरी सहित ओडिशा के तीन जिलों में कलेक्टर के रूप में काम किया। वह 2012 में बिहार कैडर में चले आए थे। बिहार में उन्हें समाज कल्याण विभाग में निदेशक के रूप में पहली पोस्टिंग मिली। इसके बाद उन्हें पूर्णिया और पटना का जिलाधिकारी बनाया गया। मनीष के पिता डॉक्टर अशोक वर्मा बिहारशरीफ के मशहूर डॉक्टर थे।
उन्होंने 2018 में नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले लिया था। कहा जाता है कि उन्होंने यह कदम नीतीश कुमार के कहने पर उठाया था। इसके बाद से ही वो नीतीश कुमार के करीबी के रूप में काम कर रहे थे।
मनीष वर्मा का जेडीयू से लगाव
मनीष वर्मा बिना किसी पद के ही पिछले एक साल से जेडीयू की संगठनात्मक गतिविधियों में लगे हुए थे। वे जेडीयू के लोकसभा चुनाव अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हुए। उन्होंने उन सभी 16 लोकसभा सीटों का लगातार दौरा किया, जहां से जेडीयू चुनाव मैदान में थी। जेडीयू ने इस बार के लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके बाद जेडीयू ने केंद्र में नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नीतीश का अगड़ा-पिछड़ा समीकरण!
आपको याद होगा कि पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित जेडीयू की बैठक में राज्य सभा सदस्य संजय झा को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया था। अब मनीष वर्मा को महासचिव (संगठन) के पद पर बैठाए जाने की चर्चा थी। इसे नीतीश कुमार की अपनी पार्टी और वोटर पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। यह अगड़ा-पिछड़ा गठबंधन की भी तरह है। (बिहार में ब्राह्मण 4.1197%) वहीं नीतीश कुमार की कोशिश है कि विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को हर तरफ से मजबूत कर लिया जाए।
इस बीच खबर ये भी है कि जेडीयू में राजपूत जाति (बिहार में राजपूत 3.4505%) से मजबूत चेहरे की भी तलाश की जा रही है जो कि अपने समाज में अच्छी पकड़ रखता हो। हालांकि हरिवंश जी को पार्टी ने राज्यसभा जरूर भेजा लेकिन वो पार्टी के लिए वोट जुटाऊ कभी भी साबित नहीं हुए। जहां तक भूमिहार (बिहार में भूमिहार 2.8693%) का सवाल है तो पार्टी ने ललन सिंह और विजय चौधरी जैसे नेता को पहले ही जगह दे रखी है। नीतीश कुमार की चाणक्य चाल को राजनीतिक पंडित एक तीर से दो निशाना साधते हुए देख रहे हैं। इससे अगड़ी जातियों में पार्टी की पैठ तो होगी ही दूसरी ओर भाजपा खेमे में भी खलबली मचेगी। क्योंकि ये अगड़ी जातियां बीजेपी की कोर वोट बैंक है।