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महाराजगंज का कौन होगा महाराजा?, कांग्रेस में डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला ठोक रहे हैं अपनी दावेदारी।

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Siwan: बिहार का महाराजगंज सीवान जिले में पड़ता है। लेकिन महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र दो जिलों के विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाया गया है। सीवान जिले की 2 और सारण जिले की 4 विधानसभा सीटें इस क्षेत्र में आते हैं। महाराजगंज में राजपूत वोटरों की संख्या अधिक है। एही वजह है कि इसे बिहार का चित्तौड़गढ़ भी कहा जाता है। महाराजगंज लोकसभा सीट से अभी बीजेपी के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल सांसद हैं। इस बार भी बीजेपी ने सिग्रीवाल पर भरोसा जताया है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम की बात करे तो बीजेपी के उम्मीदवार जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को 5,46,352 वोट मिले थे। महाराजगंज लोकसभा सीट से ज्यादातर राजपूत और भूमिहार बिरादरी के ही सांसद चुने जाते रहे हैं। आपको बतादें कि इस सीट से ही साल 1989 में देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर चुनाव लड़े और संसद पहुंचे थे।

विधानसभा सीटों का समीकरण
महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं। गोरियाकोठी, महाराजगंज, एकमा, मांझी, बनियापुर और तरैया। इन 6 सीटों में से 4 एकमा, मांझी, बनियापुर और तरैया सारण जिले में आते है और बाकी के दो गोरियाकोठी और महाराजगंज सीवान जिला विधानसभा को मिलाकर महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र का गठन हुआ है। महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आरजेडी के पास तीन विधानसभा सीटें हैं जबकि जेडीयू के पास दो सीटें हैं और एक सीट कांग्रेस के पास है। अगर सीटों के हिसाब से देखें तो गोरियाकोठी, बनियापुर और तरैया की सीटें आरजेडी के पास हैं, जबकि महाराजगंज और एकमा विधानसभा सीटों पर जेडीयू का कब्जा है। मांझी विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है। राजपूत बहुल्य इस सीट पर मुस्लिम-यादव समीकरण खेल बना और बिगाड़ सकते हैं। महाराजगंज उन चंद लोकसभा सीटों में शुमार है, जहां बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की। 2014 के चुनाव में मोदी लहर में जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने राजद के प्रभुनाथ सिंह को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया था और बीजेपी का पहली बार यहां खाता खुला।

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डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला कांग्रेस से लड़ेंगे चुनाव!

इस बार महाराजगंज कांग्रेस के खाते में चली गई है। राजद ने ये सीट कांग्रेस को दे दी है। ऐसे में कांग्रेस के डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला अपनी टिकट की दावेदारी को लेकर लगातार कोशिश कर रहे हैं। डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला स्थानीय हैं और उनका सामाजिक और राजनीतिक स्टेटस शानदार रहा है। ये स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से आते हैं। इनके पिता स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। ये अपने छात्र जीवन से ही कांग्रेस से जुड़े रहे हैं और पार्टी के विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे हैं। उनके पास राजनीति का लंबा अनुभव है। इस बार डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला महराजगंज सीट कांग्रेस के खाते में आने के बाद पार्टी के आलाकमान के पास अपनी दावेदारी रखी है। साथ ही लगातार लोकसभा क्षेत्र में भ्रमण कर रहे हैं और जनता के बीच बने हुए हैं। वो लगातार यहां की जनसमस्याओं को हल नहीं करवा पाने को लेकर स्थानीय सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को घेर रहे हैं।

भूमिहार और ब्राह्मण कर सकते हैं खेला !

महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र राजपूत बहुल सीट माना जाता है लेकिन यहां भूमिहार और ब्राह्मण भी अच्छी खासी संख्या में हैं। तकरीबन साढ़े तीन लाख भूमिहार मतदाता हैं, वहीं ब्राह्मण 1 लाख हैं। साथ ही अन्य जातियों के अलावा अतिपिछड़ी और दलित जातियों के हाथों में भी जीत की कुंजी होगी।

कांग्रेस ने आयातित उम्मीदवार उतारा तो हार तय !

इस बीच खबर ये भी है कि कांग्रेस में आयातित उम्मीदवार उतारने की भी कवायद चल रही है। जिनकी चर्चा है उनमें अरुण कुमार (2009 में कांग्रेस से चुनाव लड़े चुके हैं) उन्होंने अब तक कई पार्टियां बदली है। फिलहाल चिराग को छोड़ा है। और तारकेश्वर सिंह भी प्रयासरत हैं। लेकिन इस बीच डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला का पलड़ा इसलिए भारी है क्योंकि वो यहीं के रहने वाले हैं। साथ ही खांटी कांग्रेसी हैं। हालांकि अगर आयातित उम्मदवार को कांग्रेस ने उतारा तो उनके उम्मीदवार को अपने ही कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ सकता है।  इससे यहां बीजेपी को फायदा होगा और कांग्रेस एक बार फिर अपनी जीत सकने वाली सीट हार जाएगी।

स्थानीय सांसद सिग्रीवाल के प्रति नाराजगी

अगर विधानसभा वार पार्टी की स्थिति देखें तो महागठबंधन का पलड़ा यहां भारी है। 6 विधानसभा में से 3 राजद एक कांग्रेस और दो जदयू है। यही वजह है कि कांग्रेस अगर यहां स्थानीय भूमिहार को अपना टिकट देती है तो सिग्रीवाल को मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि जो वोट का चंक है उसमें भूमिहार अपने स्वजातीय की तरफ जा सकते हैं वहीं ब्राह्मण,यादव,मुस्लिम,एससी और अन्य पिछड़ी जातियां अगर टर्न हुई तो भाजपा को मुश्किल हो सकता है। साथ ही लोगों में स्थानीय सांसद के प्रति नाराजगी भी है। उनके पास ले देकर पीएम मोदी और राष्ट्रवाद के अलावा कोई चमत्कारी कार्ड नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी सवाल जस के तस बने हुए हैं। किसानों और नवजवानों में भी मायूसी है। यही वजह है कि डॉक्टर कमलदेव नारायण शुक्ला अपनी दावेदारी इस बार पार्टी आलाकमान के सामने मजबूती के साथ रख रहे हैं। उनका दावा है कि अगर कांग्रेस ने मुझ पर विश्वास किया तो इस बार इस सीट पर कांग्रेस का परचम लहराएगा।

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