
Siwan Election 2025: Rajesh Kaumar: सिवान जिला देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि रही है। लेकिन कालांतर में बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के प्रभाव क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। खैर ये बीते जमाने की बात है। अब आते हैं 2025 के नवंबर महीने में। सिवान विधानसभा सीट पर इस बार सबकी निगाहें टिकी हुई है। यहां पर प्रतिष्ठा दोनों गठबंधन की दाव पर है। एनडीए की तरफ से भाजपा उम्मीदवार और सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय तो दूसरी तरफ हैं महागठबंधन की ओर से आरजेडी नेता अवध बिहारी चौधरी हैं।
अब बात करते हैं सिवान सीट की जातिय समीकरण की। दरअसल आप बिहार के चुनाव में जाति को नकार नहीं सकते। यहां टिकट देने से लेकर जिताने तक में जाति फैक्टर अहम रहता है। जहां 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस बार यहां का सियासी समीकरण थोड़ा अलग है। लेकिन जीत-हार को अगर सीधे तौर पर समझना है तो यहां के जातीय समीकरण को जिसने सही तरीके से अपने पक्ष में सेट कर लिया उसकी जीत तय हो जाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार एक सवर्ण उम्मीदवार मंगल पांडेय पर दाव लगाया है। वहीं आरजेडी ने अपने पुराने नेता अवध बिहारी चौधरी को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारा है।

मंगल पांडेय की खासियत
जहां तक स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का सवाल है तो वो पहली बार सीधे तौर पर चुनावी अखाड़े में उतरे हैं। ऐसे उनके पास चुनाव लड़वाने का लंबा अनुभव है। साथ पार्टी के अंदर संगठनात्मक कार्य के संचालन की भी बेहतर समझ है। वो बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी सफलतापूर्वक निर्वहन कर चुके हैं। वहीं हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रभारी रह कर विधानसभा का चुनाव लड़वाने का भी कार्य किया है। सुशील कुमार मोदी के लिए चुनाव प्रभारी के रूप में भी अनुभव प्राप्त है। जहां कर स्वास्थ्य मंत्री के उनके कार्यकाल की बात करें तो जब पूरी दूनिया कोरोना महामारी से पीड़ित थी तब उन्होंने बड़ी ही सूझबूझ से सूबे को संभालने का काम किया।

अवध बिहारी चौधरी को भी जानिए
अब बात करते हें महागठबंधन के उम्मीदवार पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी की । वो भी यहां से विभिन्न दलों से जीत दर्ज करते रहे हैं। सिवान से ये कुल छह बार एमएलए रहे हैं। वर्ष 1985 में जनता पार्टी, 1990, 1995 जनता दल और 2000, 2005, 2020 का विधानसभा चुनाव राजद से जीतते रहे हैं। लेकिन जैसा कि पहले ही बताया कि इस बार परिस्थिति थोड़ी दूसरी है।
सिवान सीट पर कब किसने जीत दर्ज की
सिवान की सियासत पिछले कुछ समय से राजद प्रमुख लालू प्रसाद के इर्द गिर्द घूमती रही है। लेकिन अब जरा वर्षवार यहां कि सीट पर नजर डालते हैं। 1985 से 2005 (नवंबर) तक राजद के अवध बिहारी चौधरी ने इस पर कब्जा रखा। वर्ष 2005 से लेकर 2015 तक बीजेपी ने यहां कमल खिलाया। ये सौभाग्य व्यास देव को जाता है। लेकिन 2020 में फिर आरजेडी ने ये सीट अपने नाम कर ली और अवध बिहारी चौधरी जीत गए।
बीजेपी ने ब्राह्मण को टिकट क्यों दिया?
दरअसल सिवान सीट पर चार बार ब्राह्मण उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। वर्ष 1962 , 1969, 1972 और 1980 में जनसंघ से जनार्दन तिवारी ने जीत दर्ज की थी। यही वजह है कि इस बार महागठबंधन को मात देने के लिए सिवान से बीजेपी ने ब्राह्मण उम्मीदवार मंगल पांडेय को उतारा है। अब जरा आगे समझते हैं इसके पीछे वर्तमान में क्या गुणा-भाग बैठाया है बीजेपी ने। तब आपको समझ में आएगा कि मंगल पांडेय के खाते में क्यों गई ये सीट?
इसमें थोड़ा और आपको अपडेट कर दें। दरअसल ब्राह्मण में एक तरफ मैथिली ब्राह्मण हैं तो दुसरी तरफ कान्यकुब्ज,यजुर्वेदी,साकल्य द्वीप या यों कहें जो गंगा के इस पार वाले हैं। और भी स्पष्ट कर देता हूं जो काशी पंचांग के अनुसार अपनी दिनचर्या चलते हैं। उनको साधने के लिए मंगल पांडेय को बीजेपी ने उतारा है। क्योंकि पिछले कई वर्षों से ये आवाज बीजेपी के अंदर उठती रही है कि गंगा इस पार के ब्राह्मणों को पार्टी क्यों नजरअंदाज करती है। ऐसे में वो बीजेपी में बड़ा चेहरा हैं। (मैथिल ब्राह्मण विद्यापति पंचांग को मानते हैं) यहां बैंलेस करने की कोशिश की गई है।
किसका पलड़ा भारी है!
भारतीय जनता पार्टी का चुनावी टैग लाइन है सबका साथ सबका विकास। लेकिन इससे ही बीजेपी या अन्य दल नहीं जीत सकते हैं। ये एक कड़वी सच्चाई है कि बिहार में जाति जीत में सबसे बड़ा बुस्टर डोज है। ऐसे में जिसने इसको साध लिया वो विधानसभा पहुंच जाएगा। यहां ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, यादव, मुस्लिम, कुर्मी, कुशवाहा, दलित और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी निर्णायक भूमिका में है।
अब जरा इसको देखिए कि बीजेपी के तरफ कौन लोग वोट कर सकते हैं- स्वर्ण, वैश्य, कुर्मी, कुशवाह, दलित, महादलित और अति पिछड़ा। महागठबंधन की ओर यादव, मुस्लिम, दलित और कुछ अति पिछड़ा भी। महागठबंधन में कुछ दलित और अति पिछड़ा वोट माले का ट्रांस्फर हो सकता है। लेकिन ज्यादातर दलित उसमें से पासवान एनडीए को स्पोर्ट कर सकती है क्योंकि चिराग एनडीए में हैं। साथ ही महादलित के वोट को जीतन राम मांझी भी टर्न करा सकते हैं। ऐसे नीतीश कुमार का भी इस वोटबैंक पर पकड़ है। क्योंकि नीतीश कुमार ने ही दलित से महादलित को अलग किया था।
अब थोड़ा और क्लियर कर देते हैं, तो आपको समझने में आसानी होगी। मुस्लिम मतदाता 50 हजार और यादव 30 हजार, जो राजद का कोर वोटबैंक (MY) है। अब बीजेपी के मतों पर नजर डालें तो सवर्ण के 25 हजार, वैश्य 70 हजार के अलावा सहयोगी दल जदयू के कुर्मी-कोयरी के साथ ही नोनिया जाति की संख्या अच्छी खासी है। ये मोटा-मोटी आंकड़ा है। कुछ उपर नीचे हो सकता है।
अब जरा इन दो गठबंधन के बीच या यों कहें मंगल पांडेय और अवध बिहारी चौधरी के बीच में भी कोई है जो खेल करता हुआ नजर आ रहा है। इनको भी देखते हैं
जीत-हार और जीत का अंतर यहां से तय होगा
सिवान विधानसभा सीट पर केवल पांडेय जी और चौधरी जी ही लड़ने वाले नहीं हैं। ताल ठोकने वाले और भी हैं। इस कड़ी में हैदराबाद वाले असदुद्दीन ओवैसी ने अवध बिहारी की चौधराहट पर तलवार लटका रखी है। सिवान जिले में एक तरफ बीजेपी आरजेडी के इस किले में सेंध लगाना चाहती है, तो वहीं दूसरी तरफ AIMIM सीधे-सीधे आरजेडी की मुश्किल बढ़ा रही है।

दरअसल सिवान विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता 50 हजार है और ओवैसी की नजर इसी वोट बैंक पर है। AIMIM ने सीवान शहर विधानसभा सीट से मोहम्मद कैफ को अपना प्रत्याशी बनाया है। इस तरह ओवैसी के उम्मीदवार आरजेडी के उम्मीदवार और पार्टी के पुराने कद्दावर नेता रहे अवध बिहारी चौधरी की मुश्किल बढ़ाए हुए हैं। जिनका मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार और बिहार सरकार के कद्दावर मंत्री मंगल पांडेय से भी है।

जहां तक जन सुराज के उम्मीदवार की बात करें तो उसने भी यहां से मुस्लिम कनिडेट इंतिखाब अहमद को टिकट दिया है। अब ये चुनाव में जितने मजबूत बन कर उभरेंगे राजद उम्मीदवार को उतना ही नुकसान होगा। यही है टर्निंग पॉइंट?
उम्मीद करता हूं जीत-हार का गणित समझ में आ गया होगा। ये भी अब आपको दिखने लगा होगा कि कौन जीत के पास है और कौन दूर?
नोट: 6 नवंबर को मतदान है और 14 को मतगणना। आप सब से गुजारिश है कि लोकतंत्र के महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें। जय सिवान, जय बिहार।


