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Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!-Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!-Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!-Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!-Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!-डोनाल्ड ट्रंप को नहीं, जानिए किस महिला को मिला नोबेल का शांति पुरस्कार?-डोनाल्ड ट्रंप को नहीं, जानिए किस महिला को मिला नोबेल का शांति पुरस्कार?-डोनाल्ड ट्रंप को नहीं, जानिए किस महिला को मिला नोबेल का शांति पुरस्कार?-डोनाल्ड ट्रंप को नहीं, जानिए किस महिला को मिला नोबेल का शांति पुरस्कार?-प्रेमानंद महाराज की तबीयत पर जानिए क्या आया बड़ा अपडेट?,भक्तों की आंखे हो रही नम।

Prashant Kishore मुद्दों की राजनीति से बदलेंगे खेल, बिहार की राजनीति में नई उम्मीद!

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Patna, Rajesh Kumar: बिहार की सियासत जहां अब तक जाति, धर्म और गठबंधन के समीकरणों में उलझी रही, वहीं अब एक नई आवाज़ बनकर उभरे हैं प्रशांत किशोर। पिछले दिनों प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा ने मुद्दों को केंद्र में ला दिया है। उद्योग, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर खुलकर बात करने वाले प्रशांत किशोर, अब बिहार के पारंपरिक नेताओं पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।

PK ने किया क्या?

जनता से सीधा संवाद

प्रशांत किशोर ने लगातार गांव-गांव घूमकर लोगों से बात की है। इस दौरान वे भीड़ नहीं, जनभागीदारी पर ज़ोर देते दिखे। अब उसका असर भी दिख रहा है। आज की तारीख में बिहार का कोई ऐसा विधानसभा नहीं है जहां पीके के कार्यकर्ता नहीं हैं। ये उनके जनता से संवाद का ही असर है कि आज की तारीख में एनडीए हो या इंडिया गठबधंन के लोग मु्द्दों पर बात करने लगे हैं।

जाति नहीं, नीति की राजनीति

जहां बिहार के पुराने और परंपरागत राजनीति करने वाले नेता जातीय समीकरण साधने में लगे हैं, वहीं प्रशांत नीति, विकास और प्रशासनिक सुधार की बात कर रहे हैं। ये उनको अन्य नेताओं से अगल कर रही है। जो लोगों को पसंद भी लग रहा है।

शिक्षा और रोजगार पर फोकस

बिहार के युवाओं की बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था पर प्रशांत किशोर का ध्यान केंद्रित है। वो इसे बिहार के बदलाव में बड़ा हथियार मान रहे हैं। उनका मानना है कि बिहार को अगर सही में बदलना है तो शिक्षा पर विशेष कार्य करने की जरुरत है। इसके लिए वो अपनी यात्रा के दौरान लगातार रोड मैप पर जनता के बीच रखते रहे हैं। वे कहते हैं- “अगर बिहार बदलना है, तो स्कूल और दफ्तर दोनों को ठीक करना होगा।”

पारदर्शिता और डेटा की ताकत

प्रशांत किशोर के पास देश और देश से बाहर कार्य करने का अनुभव है। वो कई पार्टी और संस्था के लिए सफलतापूर्वक कार्य कर चुके हैं। यही वजह है कि वो अपने बयानों में आंकड़ों का इस्तेमाल कर उसे और भी धारदार बना देते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति, शिक्षकों की कमी, पलायन की दर या फिर अपने विरोधी द्वारा किये गये वादे और दावे को वो अपनी तर्कशक्ति से कुंद्ध कर देते हैं साथ ही सब कुछ तथ्यों के साथ सामने रखते हैं। जो लोगों को अच्छा लग रहा है।

राजनीतिक विमर्श में बदलाव

उनकी यात्रा और सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद राजनीतिक बहस की दिशा बदल दी है। अब लोग सिर्फ़ “कौन जीतेगा” नहीं, बल्कि “कौन मुद्दों की बात कर रहा है” इस पर चर्चा कर रहे हैं।

सभी पर दबाव

बिहार के पुराने नेता अब PK की बढ़ती लोकप्रियता से दबाव में हैं। जनता उनसे वही सवाल पूछ रही है जो प्रशांत किशोर उठाते हैं – लालू-नीतीश के कार्यकाल में शिक्षा क्यों नहीं सुधरी?, सरकारी अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं मिलता?, उद्योग क्यों नहीं लगे,पलायन क्यों नहीं रूका, भ्रष्टाचार चरम पर क्यों है? जैसे यह सवाल अब हर गली और चौपाल में गूंज रहे हैं। प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति को नई सोच दी है। वे नारा नहीं, नक्शा दिखा रहे हैं।  कैसे बिहार को बदला जा सकता है? उनकी यह रणनीति उन्हें बिहार के युवाओं में एक आशा का चेहरा बना रही है। लेकिन इस बीच एनडीए सरकार का बिहार की जनता को हाल के दिनों में दिया गया एक के बाद एक तोहफा और तेजस्वी यादव के नौकरी के आश्वासन के बीच बिहार चुनाव में प्रवेश कर गया है। ऐसे में सूबे में जाति,धर्म की गहरी हो चुकी जड़ों में प्रशांत किशोर कितनी सीटों पर जीत दर्ज करा पाते हैं ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन इतना तो तय है की पीके ने तमाम पार्टीं के नेताओं कि नींद हराम कर दी है। उनका वार चौतरफा होता दिख रहा है। यही वजह है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन में खलबली है।

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