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सदन हो गया हाईजैक…!, जल्दी कीजिए सर्जिकल स्ट्राइक?

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न्यूज डेस्क, राजेश कुमार: ये क्या हो रहा है? देश की जनता बेवकूफ बैठी है? जनता ने आपको वोट देकर इसलिए सदन में भेजा है कि आप हमारी समस्याओं को ना उठाकर अपनी और अपनी पार्टी की लाइन पर चलकर पूरे देश का मजाक बना दें। सोमवार से मौनसून सत्र शुरू हुआ है।आज दूसरा दिन है। पहले दिन विपक्ष ने सारा दिन हंगामा किया और सदन नहीं चलने दिया। वो भी तब जब सरकार के तरफ से ये कहा गया की सरकार विपक्ष के सभी मुद्दों और सवालों पर चर्चा के लिए तैयार है। जितना देर विपक्ष चाहे हम बहस के लिए तैयार हैं। फिर भी पहले दिन सदन नहीं चलने दिया। मजाक बना दिया है आपलोगों ने।

अब आते हैं आज यानी दूसरे दिन की कार्रवाही पर। सदन खुलते ही विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया। लोकसभा के स्पीकर ने सदन को सुचारू रूप से चलने का आग्रह किया। आज किसानों के मसले पर चर्चा होनी थी। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाथ जोड़कर विपक्ष से सदन चलने देने का आग्रह किया। कहा किसान के मसले पर बात होनी है। सदन चलने दीजिए। सरकार आपके सभी सवालों का जवाब देगी।

लेकिन किसान की हितैषी विपक्ष सरकार से कृषि और किसानों के सवाल पर सरकार को घेरने की बजाए हंगामा करता रहा। फिर वही हुआ। जहां तक राज्यसभा का प्रश्न है तो वहां भी शोरगुल और हंगामा, फिर सदन स्थगित।

विपक्ष सदन को हाईजैक करना चाहती है!

मैं हंगामा करने वाले उन तमाम सांसद से जानना चाहता हूं कि क्या आपको पता नहीं है कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे अहम स्तंभ संसद है, जहां देश की वर्तमान और भविष्य की नीतियां, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होती है? यह न केवल सरकार और विपक्ष के बीच संवाद का मंच है, बल्कि यह जनता की आवाज़ को भी सामने लाता है। हालांकि, जब आपलोग सदन में हंगामा करते हैं और कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न करते हैं, तो इसका सीधा असर लोकतंत्र और आम आवाम पर पड़ता है।

क्या आप सबको पता नहीं है कि सदन में हंगामा करना या कार्यवाही में बाधा डालना एक गंभीर मुद्दा है, जो देश की प्रगति और विकास को प्रभावित करता है ? यह सिर्फ संसद के भीतर की कार्यवाही को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। जनता ने आपको अपनी समस्याओं को सदन में उठाने के इसीलिए जीता कर भेजा था ना कि हंगामा करने के लिए।

ये सांसद हैं या हाईजैकर!

आपलोग हंगामा कर लोकतंत्र की मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं। संसदों का कर्तव्य है कि वह लोकतांत्रिक तरीके से फैसला लें और अपनी अपनी बात व्यवस्थित तरीके से खुद भी रखें और दूसरों को भी रखने दें। लेकिन हो क्या रहा है। ना हम बोलेंगे और ना किसी को बोलने देंगे। हंगामेबाज सांसदों ने तो सदन को नुक्कड़ को चौराहा बना दिया है। जहां कोई भी गली का गुंडा मवाली अपने अनुसार चलाता है। अध्यक्ष बोल रहे हैं शांत हो जाइए, सदन को चलने दीजिए। नहीं मेरी मर्जी।नहीं चलने देंगे। ऐसे में आपको सार्थक बहस ही नहीं करनी है तो इस्तीफा दो जनता दूसरे को आपना प्रतिनिधि बनाकर सदन में भेजेगी। जनता को एमपी चाहिए मवाली नहीं? बंद कीजिए ये गुंडागर्दी। यह आपके अपने जिम्मेदारियों और कर्तव्यों से भागने का संकेत देता है और जनता के प्रति आपके सम्मान को भी कम करता है। बात समझ में आ रही है।

संसद का समय और संसाधनों की बर्बादी

संसद में हंगामा करने से केवल समय का ही नुक़सान नहीं होता, बल्कि संसाधनों की भी बर्बादी होती है। हंगामेबाज सांसद महोदय। आपको यह समझना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता देश के विकास से संबंधित मुद्दों पर बहस करना है, न कि व्यक्तिगत या पार्टीगत लाभ के लिए बाधाएं उत्पन्न करना। इस प्रकार के हंगामे से न केवल सदन का समय व्यर्थ जाता है, बल्कि जनता के टैक्स के पैसों का भी नुकसान होता है। आपकी वजह से सदन बाधित हो रहा है इसका खर्चा जनता क्यों उठाए।

ये भी जानिए।

  1. संसद की प्रत्येक कार्यवाही पर हर एक मिनट में ढाई लाख (2.5) रुपये खर्च होते हैं।
  2. संसद में हंगामा होने के कारण आम आदमी का ढाई लाख रुपए हर मिनट बर्बाद होता है।
  3. आसान भाषा में समझें तो एक घंटे में डेढ़ करोड़ रुपये (1.5) खर्च हो जाता है।

जनता के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करना होता है मकसद

सदन में हंगामा करने के बजाय, सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों से जुड़ी समस्याओं और जनहित के मुद्दों पर गंभीर रूप से विचार करना चाहिए। जब संसद की कार्यवाही में व्यवधान डाला जाता है, तो महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा नहीं हो पाती, जो देश की जनता के लिए आवश्यक हो सकते हैं। इससे जनता के मुद्दे अनसुलझे रह जाते हैं और उनका विश्वास लोकतंत्र में कमजोर होता है। तो आप बताइए आप कर क्या रहे हैं?

सकारात्मक विपक्ष की भूमिका

विपक्ष का काम सत्ता पक्ष से सवाल पूछना और उनकी नीतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करना है, लेकिन यह सब गरिमापूर्ण और उचित तरीके से किया जाना चाहिए। लेकिन आपका मकसद तो सिर्फ  हंगामा और विरोध की राजनीति करना है। जबकि सरकार और विपक्ष के बीच सार्थक संवाद होना चाहिए ताकि देश की नीतियों को जनता के लिए अधिक प्रभावी और प्रासंगिक बनाया जा सके। आज की तारीख में लोगों का मानना है कि उनके प्रतिनिधि अपने कर्तव्यों को निभाने के बजाय व्यक्तिगत या दलगत फायदे के लिए संसद में अव्यवस्था फैलाते हैं। इससे न केवल चुनावी प्रक्रिया पर असर पड़ता है, बल्कि देश के शासन तंत्र के प्रति भी असंतोष पैदा हो रहा है।

हंंगामेबाज सांसद को सुधारने के उपाय

सदन में हंगामे को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। सख्त नियम और अनुशासन: सांसदों को सदन में व्यवधान डालने पर सख्त दंड का प्रावधान हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि उनकी प्राथमिकता देश के कामकाजी मुद्दे हों, न कि व्यक्तिगत। सत्ता पक्ष अपने मतभेदों को संवाद के माध्यम से हल करे। संसद में आदर्श बहस और संवेदनशील मुद्दों पर विचार-विमर्श ही लोकतंत्र की आत्मा है और इसमें जो सांसद व्यवधान पैदा करे उसकी उस दिन कि सैलरी काट दी जाए। बिना काम के पैसा नहीं। जनता को भी अपने प्रतिनिधियों के कार्यों के प्रति सजग रहना होगा। वो अपने सांसद से पूछे कि आपने हमारे क्षेत्र की समस्याओं को सदन में क्यों नहीं उठाया? क्या आपको हमने हंगामा करने और सदन को बाधित करने के लिए भेजा था?

हंगामेबाज सांसद महोदय यह जान लीजिए कि सदन में हंगामा और कार्यवाही में व्यवधान डालने का कोई भी कारण राष्ट्र की प्रगति के लिए उपयुक्त नहीं है। यह न केवल संसदीय प्रक्रिया को बाधित करता है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी संरचना को भी कमजोर करता है। सांसदों को यह समझना चाहिए कि उनका मुख्य उद्देश्य जनहित में काम करना है, न कि पार्टीगत राजनीतिक लाभ के लिए संसद का समय बर्बाद करना। जनता ने उन्हें अपनी उम्मीदों के साथ चुनकर भेजा है, और उन्हें इन उम्मीदों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी निभानी होगी। बंद कीजिए अब ये शोरगुल और हंगामा। चलने दीजिए संसद। और हां सत्ता पक्ष की भी जिम्मेदारी है कि विपक्ष को विश्वास में ले। साथ ही हमारा सबसे आग्रह है कि समय रहते इस अलोकतांत्रिक बीमारी पर सर्जिकल स्ट्राइक करके लोकतंत्र को बचाने का काम करें।

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