New Delhi: सनातन पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्षशी की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। ये वर्षभर में पड़ने वाली एकादशियों से काफी खास होती है, क्योंकि इसी दिन से भगवान विष्णु सृष्टि के संचार का कार्यभार देवाधिदेव महादेव को सौंप कर क्षीर सागर में 4 मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी के दिन जाग्रत होते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस साल देवशनी एकादशी पर रवि योग के साथ-साथ त्रिपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है। ऐसे में भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं हरिशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, भोग, श्री विष्णु आरती और पारण का समय…
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
एकादशी दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। एक तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, लाल फूल डालकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें। सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विष्णु जी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी में पीले रंग का वस्त्र बिछाकर श्री विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें। फिर जल से आचमन करें। इसके बाद प्रभु जी को पीला चंदन, फूल, माला, अक्षत आदि लगाने के साथ भोग में तुलसी का दल के साथ रखें। इसके बाद जल अर्पित करें। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर एकादशी व्रत कथा, विष्णु चालीसा, विष्णु मंत्र के बाद श्री विष्णु आरती कर लें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें और दिनभर व्रत रखें। दूसरे दिन तय समय पर पूजा पाठ करने के बाद व्रत का पारण करें।
भगवान जगदीश्वर की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आरंभ- 5 जुलाई को शाम 6 बजकर 58 मिनट से प्रारंभ।
एकादशी तिथि समाप्त- 6 जुलाई को रात 09 बजकर 14 मिनट पर समाप्त।
पारण का समय
पारण 7 जुलाई को सुबह 05:29 से सुबह 08:16 तक किया जाएगा।
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