Patna: देश में आजकल चुनावी फिजा है। हर तरफ बयानों के तीर चल रहै हैं। बातें ऐसी हो रही है जैसे महाभारत। इसी कड़ी में बिहार प्रदेश कांग्रेस सेवादल यंग ब्रिगेड के अध्यक्ष आदित्य पासवान ने लंबा चौड़ा आर्टिकल जारी किया है। जिसमें उन्होंने पासवान जाति का पूरा इतिहास,अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र का जिक्र किया है। वो भी जोशीले अंदाज में। वो लिखते हैं- जांबाज हूं और कर्मठता मेरी रगों में है। दबंगई ऐसी कि जो आंख दिखाए, उसकी आंखें फोड़ दूं , फिर चाहे कोई रहे।
सवर्ण मुझसे नफरत करते हैं
मैं वह हूं जिसने हार नहीं मानी। हालांकि मैंने अपने साहस का कभी दुरूपयोग नहीं किया। लेकिन यदि किसी ने भी मेरे साथ बदतमीजी की है तो मैंने जवाब दिया है और यही वजह है कि जितनी नफरत मुझसे सवर्ण करते हैं , उतनी ही नफरत दूसरी जाति के समानतावादी सोच के लोग भी करते हैं। मैने कभी किसी का कुछ नही बिगड़ा लेकिन फिर भी सब मुझसे दूरी बनाकर रखते आए हैं जबकि मैं तो वह हूं जो लोगों की सुरक्षा करता रहा है । आज भी बिहार , बंगाल , पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में मैं आपको चौकीदार के रूप में मिल जाऊंगा ।
लोग मुझे दुसाध भी कहते हैं
मेरा दुसाधपन मेरी खासियत रही है। मुझे कभी इस बात का मलाल नहीं रहा कि लोग मुझे क्या कहकर संबोधित करते हैं क्योंकि मैं तो “हाथी चले बाजार कुत्ते भूंके हजार” वाला जीवन जीता आया हूं। मैं कितना साहसी हूं इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि मैंने वह हर काम किया है जो अन्यों के लिए दु:साध्य रहा है और मैंने काम करने से कभी मुंह नहीं चुराया ।
खेतिहर मजदूर के रूप में भी काम किया
अपनी खेती होती तो मैं अन्यों से अधिक अनाज उपजाकर अपनी क्षमता साबित करता लेकिन खेती पर तो ऊंची जाति के लोगों का एकाधिकार रहा है । मैं ताड़ भी छेता हूं । ताड़ छेने का मतलब ताड़ के ऊपर चढ़कर उसकी कोंपलों को करीने से छिलना ताकि उससे ताड़ी निकले । यही काम पासी जाति के लोग भी करते हैं लेकिन वे पासी हैं और मैं पासवान और हमदोनों में एक मौलिक अंतर है की पासी जाति के लोग मुख्य तौर पर ताड़ पर आश्रित रहते हैं और मैं चमड़े का काम भी कर लेता हूं क्योंकि मैं शिकारी जाति भी हूं । लेकिन इन सबके बावजूद दुख इस बात का की मैं उपेक्षित रहा हूं।
इतिहास कहीं भी व्यवस्थित रूप से संरक्षित नहीं
मैं तो यह भी नहीं जानता कि मेरा उद्गम कहां से हुआ । क्या यह मुमकिन है कि हड़प्पा और मोहेनजोदड़ो की सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर थी ? मुझे लगता है कि यदि ऐसा होता तो सिंधु सभ्यता की आयु केवल 700-750 साल नहीं होती । यह जरूर हो सकता है कि मेरा साहस देख शिल्पकार समाज ने मुझे अपना रक्षक मान लिया होगा और फिर मोहेनजोदड़ो के शासकों ने भी मेरी सहायता ली होगी । लेकिन ऐसा ही हुआ होगा इसका दावा मैं नहीं कर सकता। मैं तो यह भी नहीं जानता कि जब आर्य इस देश में आये तब मैं कहां था। अब इस बात की फिकर क्या करूं कि अतीत में मैं कब कहां था और किस रूप में था लेकिन इतना तो तय है कि मैं शासक नहीं था क्योंकि यदि शासक होता तो निश्चित तौर पर मेरा इतिहास और गौरवमई होता ।
इतिहास में मेरा उल्लेख है
वैसे ऐसा भी नहीं है कि इतिहास में मेरा उल्लेख नहीं है। मैं तो अंग्रेज नृवंशविज्ञानशास्त्री व इतिहासकार हर्बट होप रिस्ली के प्रति अहसानमंद हूं, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘द ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ बंगाल’ (1891) में मुझे एक खेती करने वाली जाति के रूप में वर्णित किया है। तब का बिहार , बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और रिस्ली के मुताबिक मैं बिहार के अलावा छोटानागपुर के इलाकों में भी था । अंग्रेजों के इतिहास में मेरे बारे में कुछ और भी वर्णित है । जैसे एक तो यह कि जब अंग्रेज भारत आए और उनका सामना बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराज उद-दौला से हुआ तो उन्होंने मेरी सहायता ली। सहायता क्या ली , मुझे काम दिया और इस लायक समझा कि मैं सैनिक हो सकता हूं। अंग्रेजों ने मुझे साहस से भर दिया नहीं तो इसके पहले मैं भूमिहारों और ब्राह्मणों का लठैत हुआ करता था या फिर चौकीदार लेकिन अंग्रेजों ने मेरी क्षमता को पहचाना और मेरे ही सहयोग से अंग्रेजों ने 1757 में पलासी की लड़ाई में नवाब को हराकर जीत हासिल की। उस समय मैं रॉबर्ट क्लाइव की सेना में शामिल था। यदि आप चाहें तो मेरी तुलना उन वीर महारों से कर सकते हैं जिन्होंने भीमा – कोरेगांव की लड़ाई में बाजीराव पेशवा को हराया । खैर, यह बात तो साफ है कि मैं अछूत था और संभवत: इसलिए था क्योंकि मैं बहादुर और निडर था ।
रोजी-रोटी के लिए मैंने भीख नहीं मांगी
मेहनत किया और हर वह काम किया जिसमें आत्म सम्मान था । मुझे ब्राह्मणों ने अपने पाले में लाने की अंतहीन कोशिशें की है। एक प्रमाण तो बद्री नारायण (तिवारी) की किताब है । इस किताब का नाम है– डॉक्यूमेंटिंग डिसेंट । यह किताब 2013 में प्रकाशित हुई । यह पहली किताब है जिसके आवरण पृष्ठ पर बाबा चौेहरमल की तस्वीर है । बद्री नारायण ने अपनी किताब में मेरे बारे में जो कुछ लिखा है उसका कुल मिलाकर मतलब यह है कि मैं योद्धा जाति हूं और मेरे बारे एक विचारधारा है कि मैं कभी राजस्थान के गहलोत की 22 शाखाओं में से एक था । ब्रदी नारायण मुझे मुगलों से लड़नेवाला बताते हैं और यह भी कहते हैं कि लड़ाई में हुई विभिन्न परिस्थितियों के कारण मैं देश के पूर्वी हिस्सों में चला आया लेकिन मैं बद्री नारायण की उपरोक्त व्याख्या से इसलिए सहमत नहीं होता क्योंकि एक तो वह इसे पूर्ण रूप से साबित नहीं करते की अलग – अलग हिस्सों में पलायन करने के असली कारण क्या थे , दूसरा वे यह नहीं बताते हैं कि राजस्थान के वे राजपूत राजस्थान छोड़कर क्यों नहीं भागे , जो शासक थे और मुगलों से हार गए थे । तो क्या वे यह कहना चाहते हैं कि राजपूतों ने मुगलों से संबंध बना के समझौता कर लिया और मैंने अपने आत्मसम्मान को बचाए रखा ? खैर मेरा ब्राह्मणीकरण सुभद्रा मित्रा चन्ना और जॉन पी. मंशर ने भी अपने द्वारा संपादित पुस्तक “लाइफ ऐज अ दलित : व्यूज फ्रॉम दी बॉटम ऑन द कास्ट इन इंउिया” पुस्तक के पृष्ठ संख्या 322-323 पर भी किया है । इन दोनों ने भी मुझे क्षत्रिय कहा है। वैसे यह मुमकिन है क्योंकि अतीत में क्षत्रिय का मतलब क्षेत्रीय नायक हुआ करता था और मैं भी अपने क्षेत्र का नायक था जैसे बुद्ध और उनके पुरखे क्षेत्रीय नायक थे ।
क्षत्रिय नामक कोई शब्द था ही नहीं
यह तो हम क्षेत्रियों को अपने पाले में लाने के लिए ब्राह्मणों ने चाल चली। हमारा क्षेत्रीय शब्द ले लिया और क्षत्रिय बना दिया और इसके बाद सारे संसाधनों से हमारा अधिकार छीन लिया। एक ब्राह्मण लेखक हुए पंडित प्रदीप झा , उन्होंने अपनी किताब में मुझे महाभारत से जोड़ा है और कहा है कि मेरा वंश दुशासन से है । जितने लेखक उतनी कहानियां लेकिन मैं इन कहानियों में यकीन नहीं करता और वैसे भी मैं हमेशा से रक्षा करने के लिए जाना जाता हूं तो भरी सभा में किसी स्त्री को नंगा करने का पाप क्यों करने लगा जब उसके साथ मेरा कोई लेना-देना ही नहीं था ।
मैं तो आज की बात करता हूं
आज मेरा रहवास उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड , बिहार, झारखंड , पश्चिम बंगाल में है । उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से बनारस , चंदौली , सोनभद्र , मिर्जापुर , गाज़ीपुर , बलिया , गोरखपुर , देवरिया , सिद्धार्थनगर , बस्ती , बहराइच , संत कबीर नगर , मऊ , जौनपुर , लखनऊ , आज़मगढ़ आदि जिलों मेरी आबादी अच्छी है । वहीं बिहार के अररिया , अरवल , औरंगाबाद , बांका , बेगूसराय , भभुआ , भागलपुर , भोजपुर , बक्सर , दरभंगा , पूर्वी चंपारण , गया , गोपालगंज , जमुई , जहानाबाद , कटिहार , खगड़िया , किशनगंज , लखीसराय , मुंगेर , मुजफ्फरपुर , नालंदा , नवादा , पटना , पूर्णिया , रोहतास , सहरसा , समस्तीपुर , सारण , शेखपुरा , सीतामढ़ी , सीवान, सुपौल , वैशाली , पश्चिम चंपारण में मेरे लोग रहते हैं । झारखंड की बात कहूं तो रांची , लोहरदगा , गुमला , सिमडेगा , पलामू , पश्चिम सिंहभूम , सरायकेला , खरसावां , पूर्वी सिंहभूम , दुमका , जामताड़ा , साहेबगंज , पाकुड़ , गोड्डा , हजारीबाग , चतरा , कोडरमा , गिरिडीह , धनबाद , बोकारो और देवघर में मेरी जाति के लोग रहते हैं । इसके अलावा कुछ छिटपुट आबादी उत्तराखंड , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , दिल्ली और मध्य प्रदेश में मेरी आबादी है। बिहार और झारखंड में मैं अनुसूचित जाति में शुमार हूं
देश में संविधान लागू होने के बाद जिन अनुसूचित जातियों ने सबसे अधिक खुद को संगठित और सक्षम बनाया है, उनमें एक मैं भी हूं। यदि बिहार की बात कहूं तो मेरी ही जाति के भोला पासवान शास्त्री बिहार के मुख्यमंत्री भी बने और रामविलास पासवान तो एक नजीर ही हैं लेकिन इन रामविलास पासवान पर मैं गर्व की अनुभूति नहीं करता , कारण यह कि उन्होंने केवल अपने और अपने परिवार के लिए ही राजनीति की । इतना सब होने बावजूद आज भी मैं उपेक्षित हूं। रोजी-रोजगार का संकट है लेकिन राजनीति के लिए मुझे सभी इस्तेमाल करते हैं।
मेरे लोगों के अंदर पहले वाला आत्मसम्मान नहीं रहा
अफसोस की मेरे लोगों के अंदर पहले वाला आत्मसम्मान नहीं रहा। नेताओं में तो बिल्कुल भी नहीं लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरे लोग अपना साहस समझेंगे , शिक्षित होंगे, संगठित होंगे और सामंती व्यवस्था के वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष करेंगे ।”हां मैं दुसाध्य हूं” तो आइए “संगठित – शिक्षित – और व्यस्थित” होकर एक मजबूत समाज का सृजन करें।